आखिर उत्तराखंड के लाखों जावाजों को क्यों नहीं जोड़ा गया राहत कार्यों से ?
--करीब दो लाख पूर्व सैनिकों और 15 से 20 हजार गोरिलों (पहाडी छापामार युद्ध में प्रशिक्षित) को क्यों नहीं जोड़ा गया राहत अभियान से !
उत्तराखंड में इस समय दो लाख से ज्यादा पूर्व सैनिक व अर्ध सैनिक बलों के सेवानिवृत लोग हैं और वे पहाड़ के बारे में बखूबी वाकिफ हैं। ऐसे ही करीब 2 0 हजार गोरिल्ले हैं जो पहाडी छापामार युद्ध में प्रशिक्षित हैं।यदि उत्तराखंड सरकार इनको आपदा राहत से जोड़ देती तो ये जाबांज सेना के साथ मिलकर दुर्घटनाओं को काफी कम कर सकते थे। वन विभाग के एक बड़े अधिकारी का कहना था कि उनके वन कर्मचारी पहाड़ों के चप्पे-चप्पे में मौजूद हैं सरकार उनसे भी किसी प्रकार का काम नहीं ले पा रही है।
उनके पास संसाधन नहीं है इसलिए वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
पूर्व सैनिकों का कहना है कि उन्हें राहत कामों से जोड़ा जाता तो जंगलों में भटके यात्रियों को दो दिन में ही राहत मिल सकती थी।
इस आपदा से खिन्न एक फ़ौजी अफसर का कहना था कि "उत्तराखंड में इस समय अंधेर नगरी चौपट राज चल रहा है
Samarthya Prayas
--करीब दो लाख पूर्व सैनिकों और 15 से 20 हजार गोरिलों (पहाडी छापामार युद्ध में प्रशिक्षित) को क्यों नहीं जोड़ा गया राहत अभियान से !
उत्तराखंड में इस समय दो लाख से ज्यादा पूर्व सैनिक व अर्ध सैनिक बलों के सेवानिवृत लोग हैं और वे पहाड़ के बारे में बखूबी वाकिफ हैं। ऐसे ही करीब 2 0 हजार गोरिल्ले हैं जो पहाडी छापामार युद्ध में प्रशिक्षित हैं।यदि उत्तराखंड सरकार इनको आपदा राहत से जोड़ देती तो ये जाबांज सेना के साथ मिलकर दुर्घटनाओं को काफी कम कर सकते थे। वन विभाग के एक बड़े अधिकारी का कहना था कि उनके वन कर्मचारी पहाड़ों के चप्पे-चप्पे में मौजूद हैं सरकार उनसे भी किसी प्रकार का काम नहीं ले पा रही है।
उनके पास संसाधन नहीं है इसलिए वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
पूर्व सैनिकों का कहना है कि उन्हें राहत कामों से जोड़ा जाता तो जंगलों में भटके यात्रियों को दो दिन में ही राहत मिल सकती थी।
इस आपदा से खिन्न एक फ़ौजी अफसर का कहना था कि "उत्तराखंड में इस समय अंधेर नगरी चौपट राज चल रहा है
Samarthya Prayas
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