विवेकपूर्ण चिंतन
चीन के एक राजा थे । क्वांग नाम था । उन्होंने अपने प्रधानमंत्री शूनशुनाओ के तीन बार प्रधानमंत्री पद पर बैठाया और तीन बार हटाया, पर वे न पद पर बैठने पर प्रसन्न हुए , न उतारे जाने पर दुखी- उदिग्न । चीन के विद्वान किन वु ने उनसे उनकी मन स्थिरता और दोनों ही स्तिथियों में संतुलन का राज जानने का प्रयास किया तो वे बोले कि जब मुझे प्रधानमंत्री बनाया गया तो मैंने सोचा की अस्वीकार करना राजा का अपमान होगा । अपना कर्तव्य निभाया । जब निकल गया तो सोचा की मेरी उपयोगिता नहीं रही होगी तो पद से चिपका क्यों रहूँ ? मेरा पद से लगाव कभी नही रहा । मंत्रिपद ने मुझे कुछ दिया नहीं , न उसके छिनने से मेरा कुछ गया । जो भी सम्मान मिला , वो पद का था , सो चला गया । उसमे अफसोस क्या करना । यदि मेरा था तो वह कभी कम होने वाला नहीं था ।
यह है एक विवेकपूर्ण चिंतन का स्वरुप । हर लोकसेवी को इसी मन:स्थति में रहकर एक द्रष्टि भाव से काम करना चाहिए ।
-दिनेश कुमार सोनी
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