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अस्तित्व

एक जंगल में एक भयंकर सर्प रहता था। उसके आतंक के कारन कोई वहां से नहीं जाता था।एक दिन एक ऋषि उस रस्ते से गुजर रहे थे।उनको देखकर सर्प लपका और काटना चाहा, परन्तु ऋषि ने योग बल से उसपर विजय पा ली l

सर्प शरणागत होकर बोला -
क्षमा करिए ऋषिवर,
मैं आपकी शरण में हूँ।

ऋषि ने उसे क्षमा कर दिया, और कहा कि आज से तू किसी को नहीं काटेगा। सर्प मान गया। ऋषि चले गए ।

उनके जाने के बाद सर्प ने लोगों को काटना बंद कर दिया। किसी को वह नहीं काटता था और धीरे-धीरे जंगल का रास्ता खुल गया। लोग आने-जाने लगे l सर्प लोगों को देखकर मार्ग से हट जाता। चरवाहे लड़के वहां आने लगे।
वह सर्प को देखते ही पत्थर मरने लगे। सर्प भागकर बिल में चला जाता था। वह मार खाते-खाते दुबला और घायल हो गया था। बहुत समय बाद मुनि उस रास्ते से गुजरे।

सर्प ने प्रणाम किया और अपनी व्यथा बताई।

मुनि बोले - मुर्ख मैंने काटने से मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं।
मुनिवर समझाकर चले गए।

सर्प समझ गया।
चरवाहे लड़के पत्थर मारने वाले ही थे, कि वह फुफकार उठा। लड़के घबराकर भाग गए। तब से उसे किसी ने पत्थर नहीं मारा।

मनुष्य को अकारण किसी पर आक्रमण
नहीं करना चाहिए, परन्तु इतना डरपोक भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी उसपर आक्रमण करने की हिम्मत कर सके। इसलिए

अपना रोबीला अस्तित्व बनाये रखें, ताकि कोई भी आपकी ओर आँख उठाकर नहीं देख सके।

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