हिताय आयुर्वेद,
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व वेद के अर्थो को, जो उनकी स्मृति में थे, शब्दों में बांधकर वेदों का रूप दे दिया । इन ग्रंथो का नाम पड़ा पुराण । इनमे एक लाख श्लोक थे । उनके चार मुखो से चार वेद निकले , तब श्रुत और स्मृत अर्थो की सहायता से उन्होंने आयुर्वेद ग्रन्थ बनाया । इनमे भी एक लाख श्लोक हैं । यह अर्थवेद के उपांग के रूप में विनिर्मित हुआ । उत्पत्ति के पूर्व सृष्टि को निरोग रखने के लिए ब्रह्मा जी ने अपनी संतानों के हित लिए ही आयुर्वेद को जन्म दिया । पितामह ब्रह्मा ने इस चिकित्साशास्त्र को अपने मानसपुत्र दक्ष को और दक्ष ने अश्विनीकुमारो को तथा उन्होंने देवराज इंद्र को पढाया । इस तरह ये परंपरा चलती आ रही है । एक अन्य उक्ति के अनुसार महाभारत काल में दध्यंग अर्थवर्ण ऋषि ने वेदव्यास के अनुरोध पर अथर्ववेद की रचना की , जिसके उपवेद के रूप में आयुर्वेद विनिर्मित हुआ । दोनों ही मत अपनी अपनी जगह पर सही लगते है ; क्योंकि इससे पूर्व वेदत्रयी प्रचलित थी एवं चतुर्मुखी ब्रह्मा की चर्चा हम आदिकाल से सुनते चले आये है ।- दिनेश कुमार सोनी
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